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| मंच पर उपस्थित गुर्जर बकरवाल समुदाय से जुड़े जनप्रतिनिधि |
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| श्री विक्रांत खंडेलवाल का सम्बोधन |
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| सम्मेलन को संबोधित करते श्री सुनील आम्बेकर |
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| उपस्थित युवा |
ABVP द्वारा जम्मू कश्मीर में देश की सीमाओं पर रक्षक की भूमिका निभा रहे गुर्जर बकरवाल समाज का सम्मेलन आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम में ABVP के पूर्व राष्ट्रीय संगठन मंत्री एवं वरिष्ठ संघ प्रचारक श्री सुनील आंबेकर ने देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले इस देशभक्त समाज तक भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं, योजनाओं का लाभ पहुचाने का आव्हान करते हुए कहा कि आज भारत विश्व मे तेज गति से बढ़ता, उभरता देश है देश के सर्वांगीण विकास से ही यह संदेश विश्व मे प्रसारित होगा।
इस कार्यक्रम को ABVP के क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री विक्रांत खंडेलवाल, सरपंच सिराजुद्दीन, सरपंच लियाक़त, युवा नेता लियाक़त, इमाम साब तथा मैंने स्वयं संबोधित किया! कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने सुंदर गीत गाए, संचालन गुलाम मुस्तफा अली ने किया। कार्यक्रम में 400 से ज्यादा समाज के महिला पुरुषों ने शिरकत की।
विशेष संपर्क अभियान के अंतर्गत आयोजित इस कार्यक्रम के माध्यम से परिषद विभिन्न सामाजिक समूहों से संवाद आयोजित कर रही है।
कौन है गुर्जर बकरवाल
जम्मू-कश्मीर में गुर्जर-बकरवाल समुदाय की कुल 11 प्रतिशत आबादी है. सीमा पर युद्ध के समय कई मौकों पर बकरवाल समुदाय के लोग सेना की आंख और कान बने रहे। घुमंतू होने पर सीमा पर घुसपैठ की जानकारी बकरवाल समुदाय को होती है तो फौरन सेना को अलर्ट करते हैं। यहां तक कि कारगिल युद्ध जब हुआ था, उस दौरान भारतीय सीमा में पाकिस्तानी सैनिकों के घुसने की सबसे पहले खबर बकरवाल समुदाय के लोगों ने ही भारतीय सेना को दी थी।
अगर कोई आदमी कश्मीर में भारत का पक्ष रखता है या कश्मीरी किसी से चिढ़ते हैं तो उसे वे गुज्जर कहकर हिकारत से खुन्नस निकलते हैं।गुज्जरों के लिए खुद को बार बार गुज्जर कहलाना ही गर्व से भरता है और उनकी ऊंची पगड़ी के साथ ही सीना भी खुशी से फूल जाता है। कश्मीरियत, लद्दाकियत व जम्मूइयत के बाद यह गुज्जरियत है जिसे पहाड़ जैसा जीवन घाटी में जीना पड़ता है।
भारतीय फौज की आंख और कान है गुज्जर समुदाय जम्मू कश्मीर में। फौज के सबसे भरोसेमंद साथी हैं जो उन्हें दुर्गम से दुर्गम पहाड़ों और दर्रों की भी सूचना देते हैं जिन्हें फौज भी तलाशने में नाकाम रहती है। बंटवारे व आज़ादी के वक्त पाकिस्तान से कबायली हमलों की जानकारी भी गुज्जर बकरवालों ने ही दी थी और उनके खिलाफ खुद भी लड़े व बाद में भारतीय फौज के साथ भी लड़े। चाहे सन पैंसठ की लड़ाई हो या कारगिल का युद्ध हर बार गुज्जरों ने भारतीय फौज को सूचना दी और साथ खड़े रहे।
हालात या हुकूमत चाहे जो रहे मगर गुज्जर बकरवालों ने कभी भी आतंकवाद या अलगाववाद का रत्ती भर भी समर्थन नहीं किया। ऑपरेशन सर्प विनाश इसका उदाहरण है जिसमें गुज्जरों ने फौज के साथ मिलकर आतंकियों का सफाया किया। गुज्जर कौम ने अपने धार्मिक तौर तरीके भले ही बदलें हों मगर राष्ट्रप्रेम व राष्ट्ररक्षा का भाव नहीं। पूरी घाटी का गुज्जर समुदाय अपने पुरखों सम्राट नागभट्ट और मिहिरभोज के हिन्द के प्रतिहार होने की परंपरा को भूले नहीं हैं बल्कि बेहद गर्व व अभिमान के साथ आज भी प्रतिहारी यानि भारत की चौकीदारी करने में सबसे आगे हैं।
पाक अधिकृत कश्मीर में भी गुज्जर सबसे बड़ी नस्लीय आबादी है।पाकिस्तानी फौज व सत्ता के जुल्म व ज़्यादती के खिलाफ गुज्जरों ने लगातार आवाज़ उठाई है, परिणामस्वरूप बहुत स्व गुज्जरों को बलूचिस्तान के इलाकों में बसा दिया ताकि प्रतिरोध को दबा सके।





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