"नेक" और "निर्भीक"; राजस्थान में चल रही निकाय चुनावों की धूम के बीच वो दो शब्द जो हर दल एवं उम्मीदवार के लिए अपनी योग्यता में लिखवाने "अनिवार्य" समझे जाते है, उम्मीदवार चाहे किसी भी पार्टी का हो या विचार का, किसी अपने क्षेत्र का हो या बाहरी, महिला हो या पुरुष, उक्त सभी भेदभाव भूल जिनका उपयोग कैंडिडेट लोग करते है, उन दो शब्दों की उपेक्षा एक कैंडिडेट द्वारा करना लोगों को हजम नहीं हुआ।
बात निकाय चुनावों में लगने वाले उस होर्डिंग से शुरू हुई जिसमें उम्मीदवार रमेश(बदला हुआ नाम) ने अपनी योग्यता में "नेक और निर्भीक" नहीं लिखा। परंपरा के अनुसार जो कैंडिडेट अपनी योग्यता में नेक और निर्भीक नहीं लिखवाता उसे जनता "नॉन सीरियस" कैंडिडेट मानती है। कुछ लोग तो उस व्यक्ति को पार्षद चुनाव लड़ने के लायक भी नहीं मानते। रमेश(बदला हुआ नाम) के साथ भी यही हुआ।
रमेश(बदला हुआ नाम) जब अपने मोहल्ले के जनरल स्टोर से लिये फेसवाश से पार्षद बनने की चाह में हाथ-मुंह धोकर समर्थन के लिए लोगों के पास अपने पेम्पलेट लेकर पहुंचा तो लोगों ने उस पेम्पलेट में और मोहल्ले के नुक्कड़ पर लगे होर्डिंग में रमेश(बदला हुआ नाम) की योग्यता में "नेक" और "निर्भीक" लिखा न देख उसे आड़े हाथों लिया।
मोहल्ले के बुजुर्ग "रामो बा"(बदला हुआ नाम) ने रमेश(बदला हुआ नाम) का "माजना पाडने" में कोई कमी नहीं छोड़ी। "$%#^$&" इत्यादि अलंकरो से शुरू हुई रामो बा की गालियों ने रमेश की इज़्ज़त के सामने धूड़ हुई। हालात उस समय और बिगड़ गए जब रामो बा के "बीड़ी फ्रेंड" ढगलो बा ने रमेश को डराया की कठी थारों फोरम खारज न व्हे जावे!
इसके तुरन्त बाद रमेश ने अपनी PR फर्म को फोन कर नेक निर्भीक के साथ दबंग, सेवाभावी, लोकप्रिय भी जोड़ने का आदेश जारी किया।
अब देखना होगा कि रमेश का फॉर्म कहीं आयोग खारिज तो नहीं होगा।
लेट्स होप फ़ॉर द बेस्ट!
इसके तुरन्त बाद रमेश ने अपनी PR फर्म को फोन कर नेक निर्भीक के साथ दबंग, सेवाभावी, लोकप्रिय भी जोड़ने का आदेश जारी किया।
अब देखना होगा कि रमेश का फॉर्म कहीं आयोग खारिज तो नहीं होगा।
लेट्स होप फ़ॉर द बेस्ट!
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